(मैं हिंदी:- एक व्यथा) हिंदी हूं मैं हाय! सखी, हिंदसुता भाग्य से पर, हालत हमारी ये कि 'हिंद' में हराम हूं... संविधान में है आब, पर यथार्थ बना ख्वाब , कंठ में सभी के पर, हृदय में ताधडाम हूं.. मेरी अमराई में ये , झाड़ी जो पराई आई, मेरे पुत्र बोलते है , मैं पुराना आम हूं. मेरा पल्लू ओढ़, इठलाती ये आजादी आई, आज सारे कहते कि, मैं ही नाकाम हूं. मेरे कृति - कर्म पे, दिखाओ युग -धर्म अब, न्याय दे मुझे यूं , लोक -न्याय को निखार दो. संवैधानिक अधिकार सब ,आए व्यवहार में तो, तीन -सौ - तिरालिस(343) देख, मेरा अधिकार दो.... ©Savyasachi 'savya ' #Panditsavya #Hindidiwas