।।श्री हरिः।।
53 - श्याम भी असमर्थ
आज फिर भद्र रूठ गया है। कन्हाई इसकी सुनता नहीं - इतना विलम्ब हो गया, इसके अरूण कोमल अधर सूखने लगे, उदर नीचा हो गया, यह क्षुधातुर है और भद्र की बात ही नहीं सूनता। ऐसा खेल में लगा है कि इसे अपने श्रान्त होने, क्षुधातुर होने का ध्यान नहीं। भद्र कहता है - 'अब चल, सब भोजन करें।'
'तू भूखा है? तुझे अभी से क्षुधा लगी है?' श्याम उलटे ही पूछता है - 'तू छीका नहीं लाया तो सुबल का छीका खा ले।'
यह भी कोई बात हुई। भद्र अपनी क्षुधा के कारण कन्हाई को क्रीड़ा-विरमित होने को कहता है? वह क्या अपने लिए माता रोहिणी से कहकर आज इतना छीका भरवाकर लाया है? इस नटखट ने क्या उसका छीका देखा नहीं है कि अब सुबल के छीके की बात करता है?