#OpenPoetry उलझन तो उस दिन भी क्लच और ब्रेक में बहुत आयी थी, पेडल की जगह गेयर ने ली थी, फिर मैंने चाबी घुमाई थी। उस समय मानो दिमाग के दो हिस्से थे, इक में जोश भरा तो दूसरे में डर की गहराई थी। हाथ काप रहा था और पैर जमीं को नाप रहे थे, मानो मेरी खुद से ही लड़ाई थी। बैठ कर डरने से अच्छा, जाने कहा से मुझमें कुछ करने की हिम्मत अाई थी। फिर मैंने कलच दवाया, मोटर साइकिल को सेल्फ स्टार्ट दिया। एक्सीलेटर घुमाया और धीरे धीरे क्लच को भी आराम दिया। भागी फिर मोटर साइकिल मेरी, पहली बार कितनी ही लड़खड़ाई थी। थोड़ी आड़ी, थोड़ी तिरछी, मैंने ऐसे पहली बार मोटर साइकिल चालाई थी।। #OpenPoetry #motorcycle #himmat #story