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हस्ता है तू, ना जाने किस कारण से, रोता है कोई बादल

हस्ता है तू, ना जाने किस कारण से,
रोता है कोई बादल, जब अपने आंगन में।

इस सवेरे में भी आज कल अंधेरा-सा लगता है,
बंजर पड़ी एक ज़मीन पे भी, 
जन्नत का बसेरा-सा दिखता है,

दोश नज़रो का है या बदलती सोच का,
ये तो मालूम नही,
मगर हस्ता हुआ आज कल तू, चांदनी-सा झलकता है।

शोलो सा जलता नही तू, पानी पे चेहैकता है,
मौसम की पहचान करके,
तू अपने आप मे महकता है,
खुशबू की क्या तारीफ करू मैं,
जब तू खुद ही खुदमे मदहोश-सा टहलता है।

आशा करता हूं मैं,
कि सदा ऐसे ही मुस्कान बसें तेरे हसीन चेहरे पे,
दुनिया की असलियत तुझे ना करे उदास कभी,
एक नए कल के नए सवेरे पे।
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हस्ता है तू, ना जाने किस कारण से,
रोता है कोई बादल, जब अपने आंगन में।

इस सवेरे में भी आज कल अंधेरा-सा लगता है,
बंजर पड़ी एक ज़मीन पे भी, 
जन्नत का बसेरा-सा दिखता है,

दोश नज़रो का है या बदलती सोच का,
ये तो मालूम नही,
मगर हस्ता हुआ आज कल तू, चांदनी-सा झलकता है।

शोलो सा जलता नही तू, पानी पे चेहैकता है,
मौसम की पहचान करके,
तू अपने आप मे महकता है,
खुशबू की क्या तारीफ करू मैं,
जब तू खुद ही खुदमे मदहोश-सा टहलता है।

आशा करता हूं मैं,
कि सदा ऐसे ही मुस्कान बसें तेरे हसीन चेहरे पे,
दुनिया की असलियत तुझे ना करे उदास कभी,
एक नए कल के नए सवेरे पे।
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gatishsain8782

Gatish Sain

New Creator