ख्वाहिशें जो है, पूरी कर पाओगे क्या? सोचा तो है हाथ पकड़कर चलने का तुम्हारा , साथ -साथ चल पाओगे क्या? खूबी तो बहुत है तुम में, मेरे रिश्तों को भी निभा पाओगे क्या? आने से तुम्हारे एक अलग सी राहत है, ख्वाबों से मिलते हो तुम मेरे, मेरे ख्वाबों को समझ पाओगे क्या? दिल तो चाहता है धड़कना तुम्हारे लिए मेरी धड़कनों को सुन पाओगे क्या? कोशिश जो करती हूं तुम्हें समझने की, तुम भी मेरे जज्बातों को समझ पाओगे क्या? ख्वाहिश तो है मिलने की तुमसे मेरी मुलाकात को समझ पाओगे क्या? #दिव्या भंडारी ©Divya Bhandari luv