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खंडहर हो गये घर फिर भी इंतजार करता हैं हर बार इस घ

खंडहर
हो गये घर
फिर भी इंतजार
करता हैं हर बार
इस घर में किलकारी
फिर सुनने की बेक़रारी
टूटते घर को आज भी हैं
उमींद की गूंजती आवाज़ भी हैं
पर ये कमबख्त पलायन
जैसे हो कोई डायन
खा गई गोया पूरा गाँव
लेकिन घने जंगल की छांव
पहाड़ो के हरियाली की कशिश
से हार जायेगी शहरों की तपिश

©Kamlesh Kandpal
  #hriyali