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मन बैरी लागा मोरा जगत खेल में | इत उत देखे जग की

मन बैरी लागा मोरा जगत खेल में |

इत उत देखे जग की लीला, घिर घिर आय जग जेल में 
चहुँ ओर  सुहानी रात  दिखे,  खो गया  रेलम  पेल में 
लोभ  वासना  का  नशा  चढ़ा,  कैसे  उतरे  अमेल  में 
आय  पड़ी  लाठी  नियती  की, गिर  पड़ा ठेलम ठेल में 
कहे  इंदु  भज  कृष्ण  मुरारी, न  जाए  जम  फंदेल  में 
मन बैरी लागा मोरा जगत खेल में || मन बैरी लागा
मन बैरी लागा मोरा जगत खेल में |

इत उत देखे जग की लीला, घिर घिर आय जग जेल में 
चहुँ ओर  सुहानी रात  दिखे,  खो गया  रेलम  पेल में 
लोभ  वासना  का  नशा  चढ़ा,  कैसे  उतरे  अमेल  में 
आय  पड़ी  लाठी  नियती  की, गिर  पड़ा ठेलम ठेल में 
कहे  इंदु  भज  कृष्ण  मुरारी, न  जाए  जम  फंदेल  में 
मन बैरी लागा मोरा जगत खेल में || मन बैरी लागा