माँ-बाप का हृदय बचपन में एक टक न पलक झपका, जब नन्हा बिन सोये चमकती आँखों संग ढूँढता दूर के सितारों को, माँ-बाप का प्यार है ऐसा, ज़रा सा वहीं अटका | जब पहली बार नन्ही सी जान ने मुस्कुराया, सरलता से डैडा-डैडा कर वह रुक न पाई, देख उस परी की मुस्कान इन्होंने नींद गँवाई, माँ-बाप का प्यार देखो किस तरह भटका। वह करे खिलौनों, पुस्तकों से प्यार अपार, मुन्नी भी गुड़ियों व कलाकृतियों से करे प्यार, देख अपने बच्चों की दिन- प्रतिदिन वृद्धि, माँ-बाप का प्यार भी अपार हो झलका। उन्हें नये युग में यंत्रों संग बढ़ते देख रहे, सीमित समय, स्क्रीन टाइम वगेरह की सीख दे रहे, कह देते नहीं है मोबाइल ज़्यादा सही, समय का उचित उपयोग सिखा रहे। अब वे देखते हैं नित पल-पल मोबाइल को, कभी निहारते हैं उन पुरानी तस्वीरों को, सीखकर इस्तेमाल वाट्स-ऐप के इमोजी का, अपने बच्चों से करें चार बातें आनलाइन सुबह- शाम को। क्या ये वही है जिन्होंने रोक लगाई थी कभी! क्या ये वही हैं जिन्हें पसन्द न था यंत्रीकरण? आज बैठे वीडियो कॉल की ताक में ये दोनों, बस करते गुफ़्तगू बच्चों से दोस्तों की तरह अभी।। #कोराकाग़ज़जिजीविषा #कोराकाग़ज़ #माँबाप #माँबापकाप्यार #विशेषप्रतियोगिता #subscribersofकोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़