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कितने नादान थे हम जो सोचते थे... बड़े होने में कितन

कितने नादान थे हम
जो सोचते थे...
बड़े होने में
कितना मजा है ।।

चिकने चेहरे के
मूँछों पर...
ताव देने में
कितना मजा है ।।

बचपने की
गलियों में हम...
घर-घरौंदा
खेलते थे ।।

न पता था
जिंदगी के...
बोझ से
कितने परे थे ।।

©Manjari Singh
  #कितनेनादानथेहम...🧚‍♀️

"मेरी डायरी मेरी कविता"

@मंजरी सिंह...✍🏻

#कितनेनादानथेहम...🧚‍♀️ "मेरी डायरी मेरी कविता" @मंजरी सिंह...✍🏻

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