तिरे है इश्क के मारे बताओ हम किधर जाएं ? लगा था दूर जा कर तुमसे हम शायद सुधर जाएं । भले हो बात रोजाना बिछड़ने की हमारी पर, बिछड़ने का कभी दिन आये तो दोनों मुकर जाएं । बहुत मुश्किल से हैं ये अब जुड़े टूटे हुए धागे, न दो तुम गाँठ पर यूँ जोर की दोनों बिखर जाएं । कुरेदों मत पुराने इन जख्म को अब जियादा तुम, अभी आगाज हैं ऐसा न हो ये फिर उभर जाएं । बुरे लगने लगेंगे हम तुम्हारी ही तरह सब को, जियादा हर किसी के घर अगर हम भी ठहर जाएं । रहेगा कौन अब इस गांव में मुझको बताओ तुम ? अगर पढ़ने , कमाने के लिये हम सब शहर जाएं । मुझे ख्वाहिश नही की सब कहें गजलें मिरी जाना, लिखूँ मिसरें कभी कुछ ऐसे जो सब में उतर जाएं । तिरे है इश्क के मारे बताओ हम किधर जाएं ? लगा था दूर जा कर तुमसे हम शायद सुधर जाएं । भले हो बात रोजाना बिछड़ने की हमारी पर, बिछड़ने का कभी दिन आये तो दोनों मुकर जाएं । बहुत मुश्किल से हैं ये अब जुड़े टूटे हुए धागे, न दो तुम गाँठ पर यूँ जोर की दोनों बिखर जाएं ।