एक बिलबिलाती नदी जो समुद्र से मिलने की चाह में चली थी सुदूर कहीं दक्षिण से जो जीती रही इस भ्रम में कि मटमैला जल मीठा है उसका मिटा ना सकी जो कभी तृष्णा किसी की ना पा ही सकी जलधि को पथ में ही सूख गयी हार गई लड़ाई स्वयं अपने अस्तित्व की.. और अहं में कहती रही जाते-मिटते मिलने से अच्छा है खारे सागर में लुप्त हो जाना ऐसे ही..! वो कूलंकषा अनभिज्ञ थी शायद पारावार निगलता है कुंठाएं सभी शहरों से आयी दूषित नदियों की हांलाकि वो अपेय है लवणता यथेष्ट है उसमें पर पालता है फिर भी असंख्य पादप मछलियां सीपियाँ अपने असीम गर्भ में ये गर्भधारण भला वो सूखी नदी क्या जाने! खारापन ही गुण है उसका इस गुण के कारण ही जीवित है अब तक वरना संसार निगल जाता उसे!! ©KaushalAlmora #खारा #समुद्र #समंदर #yqdidi #नदी #रोजकाडोजwithkaushalalmora #खारापन #365days365quotes