ज़हर रिस रहा है जिसके रंगों से जिंदगी तस्वीर ही कुछ ऐसी है ढल गए साये भी तुम से क्या गिला शाम की तासीर ही कुछ ऐसी है तू मेरा साथी था बस उजालों का तू अंधेरों तक कहां रुकती यहाँ मैं मुसाफिर काली स्याह रात का मंजिले राहगीर ही कुछ ऐसी है प्रीत लक्खी #alone #preet_lakhi #Nojoto #nojotohindi #SAD #Poetry #ishq