"मनवा बेहरुपिया" वहीं खताए मन हरबार करता है, फिर भी ना जाने क्यूं खुदको होशियार कहता है।जागे जो मन बेहोशी से, खुदको गुनाहगार कहता हैं। अजब है खेल इस बहरूपिएं मन का, कभी होशियार,तो कभी गुनाहगार बन जाता है। चाहते हो अगर मुक्ति मन के,दो के धोखे से तो थामें रखना दामन होश और धीरज का धैर्य से। #Duality of Mind #Manwa behroopiya #Anubhav ki kalam se