पंख फैला उड़ रही थी, बेखबर थी अपने आशियानें से। तिनके से थे घर अरमानो के सजाया; हर एक ज़र्रा उनमें बिताने को। क्या पता जाना ही होगा अनजान आशियानें में। माना था जिसको आशिया उसने, वो कभी था ही नही "सोन चिड़िया" का ठिकाना। बस यूँही😄 हिंदी कुछ खास अच्छी नही है 😜😜 🙏🙏