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अपने कोमल अधरों से, गालों पर प्यार लुटाती थी।। ज

अपने कोमल अधरों से,
गालों पर प्यार लुटाती थी।। 
जब भी मैं रोने लगता,
आँचल में मुझे छिपाती थी।। 
अपने सीने से चिपका कर,
प्यार से मुझे सुलाती।।
लोरी गाती मधुर-मधुर,
थपकी से सिर सहलाती।। 
ऐसे नित खुश रहे सदा,
ज्यों मैं खुशियों का दर्पण
धन्य-धन्य हे! माँ तेरा था,
कितना अतुल समर्पण।।

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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