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एक गज़ल लिखी है जो बस तुम्हें सुनाना चाहता हूँ तु

एक गज़ल लिखी है जो बस तुम्हें सुनाना चाहता हूँ 
तुम्हारी आँखों से मैं तुम्हें रूबरू कराना चाहता हूँ । 

मैं नहीं कहूँगा कि सबसे ज़्यादा तू तुम्हें 
पर खुद से ज़्यादा मैं तुम्हें चाहता हूँ 

मेरा कोई इरादा नहीं है इधर - उधर होटलों में ले जाने का 
मैं अपनी माँ से तुम्हें मिलाना चाहता हूँ ।
 
मैं तुम्हें चाँद कहूँगा तो ये तौहीन है हुस्न की 
एक परी आती है ख़्वाबों में मैं उसे तुमसे मिलाना चाहता हूँ 

अब सोने की अंगूठी तो दे नहीं सकता तुम्हें 
एक पायल है वो तुम्हें खुद पहनाना चाहता हूँ
एक गज़ल लिखी है जो बस तुम्हें सुनाना चाहता हूँ 
तुम्हारी आँखों से मैं तुम्हें रूबरू कराना चाहता हूँ । 

मैं नहीं कहूँगा कि सबसे ज़्यादा तू तुम्हें 
पर खुद से ज़्यादा मैं तुम्हें चाहता हूँ 

मेरा कोई इरादा नहीं है इधर - उधर होटलों में ले जाने का 
मैं अपनी माँ से तुम्हें मिलाना चाहता हूँ ।
 
मैं तुम्हें चाँद कहूँगा तो ये तौहीन है हुस्न की 
एक परी आती है ख़्वाबों में मैं उसे तुमसे मिलाना चाहता हूँ 

अब सोने की अंगूठी तो दे नहीं सकता तुम्हें 
एक पायल है वो तुम्हें खुद पहनाना चाहता हूँ