वो कोरे कागज सब समेट लेते है , उल्झे रेशम के धागो से लेकर , आसंमा में बिखरे सितारो तक । मेरे कमरे की खुली खिड़की से लेकर , हवेली के गुम हुए उन चोबारो तक । आसंमा में शोर मचाते काले बादलो से लेकर , पत्तो से झर-झर होती नन्ही बुंदो तक । सब समेट लेते है । नीली सयाही में भीगी कलम , हजारो रंग बिखेर देती है । बेरंग है वो कोरे कागज़ ..... तुम्हारी अतरंगी तस्वीर मे रंग भरने को , बंद कमरे का शोर नहीं , लब-डब करता धिमा संगीत चाहिए। ©PRIYANSHI MITTAL #tumaurmain #KoreKagaz #Poetry #poem #Music #musings #Nojoto #thought #Love #Memories