ढलती शाम को बापू की वो बाते अब याद आती हैं, बचपन के शाम की मां की वो रोटियाँ याद आती हैं, ढलती शाम को बापू ...........।। शाम ढलते ही दोस्तों से बिछड़ कर घर मे चुपचाप आना, रात को सोने तक मां को दिन की वो सारी बात बताना, ढलती शाम को बापू........।। भैया से शाम को लड़ना लड़कर मां से सुलह करवाना , माँ से बहन की चुगली करना, बापू से भैया को डटवाना, ढलती शाम को बापू .........।। बचपन भी तो अपना था कहाँ किसकी क्या सुननी थी, हमारी ही थी वो दुनियाँ जो माँ के आँचल मे बनती थी, ढलती शाम को बापू ........।। शाम के आने का और माँ के आँचल मे छुपने का, सौभाग्यी ही जाने राज प्रिय ममता के आँचल का, ढलती शाम को बापू......।। #कुशवाहाजी #ढलती_शाम