"विवाह की रस्में" अंक -1 भाग- ख जब घर पहुंचे ही थे; कि गाड़ी में ही मेरी छोटी ननद शर्बत ले आई और कहा पीजिये रस्म है। मैने पिया तो कहा अब नेग (रुपये) दो। मैने पर्स से निकाल कर दे दिए, और वो भागकर चली गई, गाड़ी से उतरकर गेट तक पहुंचे तो बड़ी ननद ओर छोटी ननद ने रोक लिया बाड़ रुकाई दो रस्म है मैं पर्स निकालने लगी कि नकुल जी ने रोक दिया। नकुल (मुस्कुरा कर)ये मुझे देना हैं आपको नही नकुल ओर मैं जैसे ही अन्दर जाते हैं। थालियां रखी थी। नकुल से कहा गया कि तुम तलवार से इन्हें अलग अलग रखो, ओर बीनणी इन्हें उठाएगी पर उठाते वक्त आवाज नही आनी चाहिए अगर आवाज आयी तो घर मे झगड़े बढ़ेंगे बीनणी के आने से। कितनी अजीब सी रस्मे हैं, इन सबकी पढ़ाई तो कभी नही करवाई गई, ना ही कोई तैयारियां । ये बर्तनों का व्यवहार से ओर झगड़े से कैसे जुड़ाव होता हैं एक पल को चिल्लाकर पूछना चाहती थी । पर ये सब मुझे किसी सर्कस जैसा लग रहा था। जैसे ही मैं थाली उठाने के लिए आगे बढ़ती हूं। जब घर पहुंचे ही थे; कि गाड़ी में ही मेरी छोटी ननद शर्बत ले आई और कहा पीजिये रस्म है। मैने पिया तो कहा अब नेग (रुपये) दो। मैने पर्स से निकाल कर दे दिए, और वो भागकर चली गई, गाड़ी से उतरकर गेट तक पहुंचे तो बड़ी ननद ओर छोटी ननद ने रोक लिया बाड़ रुकाई दो रस्म है मैं पर्स निकालने लगी कि नकुल जी ने रोक दिया।