मैं...मेरा अस्तित्व क्या? मैं आखिर हूं एक खिड़की। हां...सच पहचाना मेरी जात स्त्री! कभी खुलती कभी बन्द होती, कभी अधखुली खिड़की ही तो हूं। आदमी आता जब चाहे मुझे खोल देता। चिलचिलाती गर्मी में पूरी तरह तैयार हो जाती हूं, हवा देने के लिए। ठंडी हवा के झोंके पहुंचाते वक़्त मेरी खूब तारीफ होती है। वाह...और मैं तरह तरह के बाहरी नजारे बताने में मशगूल हो जाती हूं। रात हो जाती है, मुझे कुंडी लगाकर बन्द कर दिया जाता है। कभी पत्तों के टकराने से बजती कभी खामोश रहती कल की सुबह का रास्ता देखती खुलने का इंतजार करती। #NojotoQuote #nojotopune #poetry #khidki #खिड़की की #आत्मकथा #कविता #हिंदी #hindi