अजीब है दास्तान हमारा ख़ुद के दिल से उलझकर कशमकश के दायरे में रहकर जीनें में जीना भी क्या जीना..? सवाल अनगिनत हैं ज़िन्दगी से हमें बेशुमार ताउम्र जवाब तलाशते हुए भी सुकूं न मिले, तो बैचैनी के दायरे में रहकर जीने में जीना भी क्या जीना..? आजमाते हुए कर लिया हमने ख़ुद को फ़ना ऐसी ज़िन्दगी का होने में होना क्या होना..? राख़ होने को अरमां सारे हकीक़त की उम्मीद के दायरे में रहकर देखने में देखना भी क्या देखना..? ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1091 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।