अज़रा अब्बास मेज़ पर रखे हैं हाथ हाथों को मेज़ पर से उठाती हूँ फिर भी पड़े रहते हैं मेज़ पर और हँसते हैं मेज़ पर रखे अपने ही दो हाथों को हाथों से उठाना मुश्किल लगता है में हाथों को दाँतों से उठाती हूँ पर हाथ नहीं उठते मेज़ पर रह जाते हैं दाँतों के निशानों से भरे हुए साकित और घूरते हुए मैं भी हाथों को घूरती हूँ मेज़ का रंग आँखों में भर जाता है मैं आँखें बंद कर लेती हूँ सो जाती हूँ मेज़ पर रखे हुए हाथों पर सर रख कर