उस बेकदर बेवफा ने मेरा दिल कया तोडा, मोहबत ने उसके चेहरे से मासूमियत तक छीन ली कसूर मेरी आंखो का था दिल तो मासूम था, ना आंखे उनपे ठहरती ना दिल उनसे मोहबत करता, कया शिकायत करू मे तकदीर से जब वो शकस हाथो की लकीरो मे था ही नहीं, वो अनदेखी मंजिल का मुकम्मल सफर था, उसकी मोहबत की चाहत मे मेरी जिंदगी हो गयी राहगीर सी, जिसको चाहा था हमने अब वो किसी और की सच्चाई है, कया पता था वो मोहबत नही मेरी जिंदगी की तबाही है, गुजर रही ह दर्द ए जिंदगी बस जिंदगी दो ही सवाल मे, कयू तोडा दो बार उसने मुझे कया मोहबत करना गुनाह था मेरा,