ख़्वाबों के घरौंदे बचपन में, मैंने भी बनाए थे उसके साथ, खेलता था में भी हमेंशा, अपनी बचपन की परी के साथ। बहुत ही हसीन वो दिन थे, जब छोटी सी गुड़िया जैसी, वह आती थी मेरे घर और, देखके उसकी एक झलक, खुश हो जाता था में बहुत ही। गुजर जाता था, पूरा दिन यूंँ उसके साथ, चंद लम्हों में ही, जैसे लगता था अभी तो दिन शुरू हुआ, और जल्द ही ख़त्म भी हो गया। वक़्त गुजरा बचपन भी गुजरा, और वह भी चली गई बड़ी होकर, मेरी जिंदगी में से, पीछे रह गया उसकी यादों का झरोखा, और सुना रह गया मेरे ख्वाबों का घरौंदा। -Nitesh Prajapati ♥️ Challenge-909 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।