वह गिराता रहा, मैं बनाता रहा इस कदर वह मुझे सताता रहा खासियत उसकी यह भा गई मुझे सिद्दत से दुश्मनी को निभाता रहा 'नाम-ए-मंज़िल' से बेख़बर था मैं वो मंज़िल का पता यूँ बताता रहा मैं गिरता, संभलता, फ़िर गिरता हँसकर जोश मुझ में जगाता रहा आगे आगे 'नफ़रत' की मशाल ले मंज़िल की राह रौशन करता रहा कवि सम्मेलन भाग-2 चतुर्थ रचना: दोस्त या दुश्मन? #kkकविसम्मेलन #कोराकाग़ज़ #kk_krishna_prem #kkकविसम्मेलन2 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़