कभी पगडंडियों से पूछो उसके दिल का हाल मुसाफिर आते हैं रोज सुबह दोपहर और शाम हर कोई रौंदता है अपनी जरूरतों के मुताबिक... अपनी मंजिल तक जाने के लिए छोड़ जाता है उसे अकेला वीरान सा, इंतजार उसे होता है फिर भी .. कड़कती धुप हो या फिर कोई सर्द शाम प्रतीक्षा में किसी पथिक की, दिनभर कुचले जाने के बाद फिर से किसी राहगीर की तलाश में कोई आए, जो जख्म भरने लगे हैं फिर से उन घांसों को अपने पैरों से रौंद कर फिर से उसे(पगडण्डी) वीरान कर जाए कोई, क्या इन पगडंडियों को ये नहीं लगता कि कोई राही आये और दो पल को बैठे साथ में, कुछ दूर चले इनके भी साथ में जब तक मिल न जाए कोई दूसरा मुसाफिर जो साथ दे सुदूर तक कोई तो समझे इन पगडण्डियों का दर्द निस्वार्थ प्रेम की पगडण्डी रूपी कल्पना। #yqquotes #yqbaba #yqsahitya #पगडण्डी #निस्वार्थ_प्रेम #ख्याल #मुसाफिर #राही Try to think like a pagdandi