घूँघट को उठाने का अब रिवाज़ चला गया। दुल्हन के शरमाने का अंदाज चला गया। चली गयी वो रश्में जो प्यार का सलीका सिखाती थीं। आहिस्ता आहिस्ता इक दूजे को रूह से मिलाती थीं। अब तो मिलते ही लोग जिस्म का सौदा ही करते हैं। सच्चे आशिक बेचारे रूह के लिए तरश्ते हैं। ~आशीष द्विवेदी ©Bazirao Ashish #customsexpired