हमारे पुरखों ने उपासना को अनिवार्य बताया।सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद तारे निकलने तक इसका एक मात्र कारण लम्बी आयु और बेहतर स्वास्थ्य था। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 न तिष्ठति तु यः पूर्वां नोपासते यश्च पश्चिमाम्। स शूद्रवद्बहिष्कार्य: सर्वस्माद् द्विजकर्मणः।। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 यदि तुम प्रातः और सांयकाल में उपासना नहीं करते हो तब तुम शूद्रता को प्राप्त हुए श्रेष्ठ कर्म से बहिष्कृत (विमुख) हो जाओगे। (मनुस्मृति अध्याय -02 श्लोक - 103) जब अर्थ का अनर्थ कर दिया जाता है तो हमें ठीक होने वाली बात भी गलत मालूम पड़ती है।लेकिन स्वविवेक से यह ज़रूर चिंतन करना चाहिए कि सही क्या है?कुछ गलत मिल जाए तो उसे ठीक करने का प्रयास तो होना ही चाहिए।महाभारत में भी उपासना के बारे में ऐसा ही वर्णन है---- ऋषयो नित्यसंध्यत्वाद्दीर्घमायुरवाप्नुवन्। तस्मातिष्ठेत्सदा पूर्वां पश्चिमां चैव वाग्यतः।। ऋषियों ने सुबह और सांयकाल की उपासना कर दीर्घायु वाला जीवन प्राप्त किया।इसलिए हमें भी बैठकर सुबह और शाम को उपासना करनी चाहिए। महाभारत अनु. अध्याय 104 श्लोक - 18