नाद..अन्तस का शिराओं को भेद उर्घ्वाकार हो अन्वेषित करता द्वार मन-मस्तिष्क में.. तिमिराच्छादित कषाय पोषित आलस्य सिंचित मूक कोष्ठ-प्रकोष्ठ के नीरवता को करता विखण्डित.. गह्वर से आरोह गुंजायमान होता स्वर से बस.. नादमय हो अन्तस। ©sj..✍ #शुभाक्षरी #अन्तस