जैसे पत्तों से ओस सरकती है, जैसे हर रोज कई ठोकरें लगती हैं, औरो की ख्वाहिशों में, अपनी चाहते कुछ थम सी गई, ना जाने कब ज़िंदगी यूं गुज़र सी गई। ज़िंदगी से लडने का हमने इरादा कर लिया, हर ठोकर पर मजबूत उसे पहले से ज्यादा कर लिया, मगर अंत में हालातों की हकीकत से मुलाकात हो ही गई, ना जाने कब ज़िंदगी यूं गुज़र सी गई। ना जाने क्यूं एक वक्त ऐसा हुआ, उन्होंने तो क्या उनकी यादों ने भी आना छोड़ सा दिया, प्यार के चूल्हे पर हमारी रोटी कुछ जल सी गई, ना जाने कब ज़िंदगी यूं गुज़र सी गई। Disclaimer:- ये पंक्तियां पूर्णता काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई ताल्लुक होना महज़ इत्तफाक होगा।😅😅 #yosimwrimo में आज का simile #challenge #ज़िन्दगीगुज़रगई #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi