सफर हुआ शुरू मगर, अन्त ना हुआ अगर यही सोचकर चला था मैं, छाने थे गाँव, नापे नगर घूमा यहाँ, घूमा वहाँ, बस छोटी सी इस आस में भटका हूँ उम्र सारी मैं, इंसानियत की तलाश में!! जिधर भी ये कदम पड़े, थे लोग कुछ खड़े मिले कितने थे धरती में गड़े, इक आध आसमां चढ़े इंसान तो यहाँ खूब थे, इंसानियत कुछ ही में थी यही देखकर, यही सोचकर, हुआ हूँ अब निराश मैं भटका हूँ उम्र सारी मैं, इंसानियत की तलाश में!! अब कारवां आगे बढ़ा, सब बढ़ गये बस मैं खड़ा एकांत में जाने कहाँ, बढ़ा चला, चला गया वीरान जिंदगानियां, थी ठूंठ सी कहानियाँ था खुद को कोसने लगा, ना आता यहाँ काश मैं भटका हूँ उम्र सारी मैं, इंसानियत की तलाश में!! Challenge-149 #collabwithकोराकाग़ज़ विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ :) अपने शब्दों में एक कविता लिखिए :) #मेरीकविता #विश्वकवितादिवस #कोराकाग़ज़ #yqdidi #yqbaba #YourQuoteAndMine Collaborating with कोरा काग़ज़ ™️