हमेशा लगा कि कभी अच्छा बेटा था ही नहीं जाते जाते बोलीं अगले जन्म में फिर तू मेरा बेटा बनना और चलीं गईं अपनी सब तकलीफों से मुक्त हो गईं छोड़कर अपने उस बेटे को जिसको कदम कदम पर उनकी जरुरत पड़ती थी, जिसने कभी उनके बिना जीना सोचा, सीखा ही ना था। मैं हमेशा से उनका लाडला था पर ढेरों प्यार के साथ गलती पर उतनी जम के पिटाई भी होती मन में उनके लिए असीम स्नेह और आपार इज्ज़त थी वो ही तो पिता तक मेरी बात पहुंचाने और मनवाने का जरिया थी बचपन इतना सुखद और बेफिक्र गुज़रा। हमारे यहां पैसों का सदा से अभाव था मेरी बेहतर ज़िन्दगी के प्रयास में सदैव संघर्षं में लगी रहती नौकरी घर मेरी पढ़ाई का बोझ हमेशा मुस्कुराते हुए सहती मेरे उज्वल भविष्य का ख्वाब उन्होंने जो संजों के रखे था पूरा करने के लिए मुझे हमेशा प्रोत्साहित करती। मेरी शादी के बाद में उनके बर्ताव में फर्क पाया शायद उन्हें लगा मेरी पत्नी ने मुझे उनसे छीन लिया हमेशा प्रयास था मेरा कि उन्हें कोई शिकायत का मौका ना दूं पत्नी को कभी दुख पहुंचाकर भी उन्हें सदैव खुश रखूं बस उनसे यही गिला थी कि बहू को बेटी का दर्जा न दे सकी। धीरे धीरे बीमारियों ने उन्हें जकड़ लिया बाकी तकलीफों की तरह उनका सामना भी डट के किया धीरे धीरे हिम्मत जवाब देने लगी उनके स्वर्गवास को सालों बीत चुके पर कल की ही बात लगती है वो कल भी मेरे साथ थीं वो आज भी मेरे पास हैं। मां