मुद्द्त से आइने से न हम रू ब रू हुए। किस्से हमारे हुस्न के पर चार सू हुए। यूँ काग़जी गुलों से न बहलाइये हमें डूबे सरापा इश्क़ में खुद रंग-ओ-बू हुए कहता है कौन इश्क़ में जुड़ता नहीं है दिल ज़िंदा हैं आज भी हुआ अरसा रफ़ू हुए। फिरते रहे ताउम्र ही जिसकी तलाश में हैरान हैं कि हम उसी की जुस्तजू हुए। कुछ यूँ मिला खुलूस-ओ-मुहब्बत से अजनबी चर्चे हमारे इश्क़ के फिर कू ब कू हुए। दिल, ज़हनियत, निगाह को हमने किया वुज़ू उस पाक साफ़ हुस्न से जब रू ब रू हुए। नफ़रत से जीत पाती न 'मीरा' कभी यहाँ बाँटीं मुहब्बतें तभी तो सुर्ख़ रू हुए। #आइना और मैं🧝♀️