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भ्रम! मैं तेज़ भाग रही थी, उसके पीछे: शाम ढलने लगी

भ्रम!
मैं तेज़ भाग रही थी, उसके पीछे:
शाम ढलने लगी थी।
धुंधली आंखों से देखा था मैंने उसको,
सांसें उखड़ने लगी थी।
किसी ने मुझे आवाज़ लगाई थी,
अचानक, तेज़ ठोकर लगी।
ये क्या हुआ था मन को?
अंजान थी, जिसे पहचान समझ  बैठी थी मैं,
परछाई थी, जिसे इंसान समझ बैठी थी मैं। मैं कब से तेरी राह देखूँ,
ज़िन्दगी कहाँ है तू...
#ज़िन्दगीकहाँहै #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine #yqhindi #yqcollab #yourquotedidi #yqpoetry
Collaborating with YourQuote Didi
भ्रम!
मैं तेज़ भाग रही थी, उसके पीछे:
शाम ढलने लगी थी।
धुंधली आंखों से देखा था मैंने उसको,
सांसें उखड़ने लगी थी।
किसी ने मुझे आवाज़ लगाई थी,
अचानक, तेज़ ठोकर लगी।
ये क्या हुआ था मन को?
अंजान थी, जिसे पहचान समझ  बैठी थी मैं,
परछाई थी, जिसे इंसान समझ बैठी थी मैं। मैं कब से तेरी राह देखूँ,
ज़िन्दगी कहाँ है तू...
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