मैं वो मुसाफिर .. मैं वो मुसाफिर जो अश्क़ों को शब्दों में लिखता हूं मैं तो मोहब्बत को अपनी पन्नो में गढ़ता हूं। शब्दो की राहों में मेरे नींद में आने वाले ख्वाबो में मैं तुझसे सारी बातें कहता हूं जो कहने से डरता हूँ कभी चुप चुप सा एक कोने से तेरे चहरे को तकता हूं अजीब शख्शियत सी उबरी है मुझमे जो अपनी परछाई को भी तेरी मौजूदगी समझता हूं । मैं वो शख्शियत हूं जो अपने अस्तित्व को मंदिर मस्जिद और गिरजों में नही ढूंढता हूँ क्योंकि मैं अपने अस्तित्व का कारण खुद की परछाई से पूछता हूँ । मैं तो तन्हाई में कर लेता हूं बाते उन पन्नो से जिनमे अपने मांझी को गढ़ता हूँ । मैं अपने अश्क़ों को शब्दों में लिखता हूँ मैं अपनी जिंदगी के मर्मों को पन्नो में गढ़ता हूँ। मैं वो मुसाफिर .. मैं वो मुसाफिर जो अश्क़ों को शब्दों में लिखता हूं मैं तो मोहब्बत को अपनी पन्नो में गढ़ता हूं। शब्दो की राहों में मेरे नींद में आने वाले ख्वाबो में मैं तुझसे सारी बातें कहता हूं जो कहने से डरता हूँ कभी चुप चुप सा एक कोने से तेरे चहरे को तकता हूं अजीब शख्शियत सी उबरी है मुझमे जो अपनी परछाई को भी तेरी मौजूदगी समझता हूं ।