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क्या लिखूँ क्या  लिखूँ   संवेदना

क्या लिखूँ क्या  लिखूँ   संवेदनाएं,   क्या  लिखूँ   संत्रास   मैं।
क्या लिखूँ अब स्वप्न सुंदर, क्या लिखूँ आभास मैं॥

क्या लिखूँ  आशा  हृदय  की,  पीर जब  उसमें भरी।
क्या लिखूँ हरियालियाँ फिर, क्या लिखूँ मधुमास मैं॥

क्या लिखूँ परमार्थ सेवा, स्वार्थ जब पग पग मिले।
क्या लिखूँ मैं साधना फिर, क्या  लिखूँ विश्वास मैं॥

क्या  लिखूँ  कोई  व्यथा जब,  फूट हर  उर में पड़ी।
क्या लिखूँ मैं एकता फिर, क्या लिखूँ अब आस मैं॥

क्या लिखूँ अब देश  के प्रति, भक्ति  जब है ही नहीं।
क्या लिखूँ फिर क्रांतियां मैं, क्या लिखूँ अहसास मैं॥

क्या लिखूँ मैं  कामना अब, प्रीति  के परवाज का।
क्या लिखूँ श्रृंगार रस भी, क्या लिखूँ अब रास मैं॥

क्या  लिखूँ  मैं  बदनसीबी, आज  अपने भाग्य का।
क्या लिखूँ अपनी कहानी, क्या लिखूँ कुछ खास मैं॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
  #गीतिका #क्या_लिखूँ