बचपन ही सही था अहमियत तो थी दोस्तों की रूठने के बाद मनाने की आदत तो थी दोस्तों की चार दिन क्या बढ़ गये हमारी उम्र में चार जन्मों की दूरियां ला दी हमारे रिश्तों में मानते है पा ली है तुमने अपनी मंजिल को इतने मदहोश हो कि भूल गये अपने दोस्तों को तेरी चमकती दुनिया से बहुत दूर है हम कभी फुरसत मिले तो हमसे मिलने आ जाना तुम दोस्त हूँ बदले में सच्ची दोस्ती ही मांगती हूँ मन रहे तो ठीक है वरना अकेले रहना जानती हूँ आज भी हांथों में उन्हीं कंचों को लेकर बैठती हूँ तुम आओगे खेलने इस विश्वास में इंतज़ार करती हूँ देख पाऊँगी तुम्हें घर गांव में इस बात को मन में रखती हूँ इतनी ऊंचाइयों से तुम्हें गांव दिखता है इस सोच में रहती हूँ #childhoodfriend#बचपनकीयादें#hindipoem#nojotohindi#Gudiyagupta