गीत इंसान भटकता है पथ पर मंजिल का ठिकाना क्या जाने ? अनजान सफर है जीवन का कुदरत का निशाना क्या जाने ? बेदर्द भरे हैं महफ़िल में शोहरत के नशे में बेगानें ! दौलत को चूमते बस केवल मस्ती में झूमते दीवानें ! दिल मोम नही है पत्थर है रोते को हँसाना क्या जाने ? इंसान भटकता है पथ पर-- मंज़िल का ठिकाना क्या जाने ? बेरहम दरिन्दें हैं शातिर जख्मों से खेला करते हैं ! नफरत फैलाते रिश्तों में पल पल में झमेला करते हैं ! अपनों को अपने छलते हैं खुदगर्ज जमाना क्या जाने ! इंसान भटकता है पथ पर मंजिल का ठिकाना क्या जाने ? रचना-कुंदन उपाध्याय (जय हिंद) ©Kundan Upadhyay इंसान भटकते है पथ पर #MereKhayaal #national#nation#hindian#जयहिंद