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याद पड़ता है, तुम्हें गए साल के पहले, उस बरस हां, इ

याद पड़ता है, तुम्हें
गए साल के पहले, उस बरस
हां, इसी माघ में
एहतियात से रोप तुम्हें, थपथपाकर
छोड़ रखा था मिट्टी जो
हरहराकर तुम भी तो
खिल उट्ठे थे कैसे, छत की मुंडेर पर...

ऐसे ही कुछ बिताए, तुम्हारे साथ के
लम्हों की शाखों पर
गुफ्तगू की निकल आई हैं कोपलें
जी करता है कि अब, सब धड़ यहीं...
दो बातें करूँ!

#स्ट्रॉबेरी 
manas_pratyay

©river_of_thoughts #Strawberry © Ratan Kumar
याद पड़ता है, तुम्हें
गए साल के पहले, उस बरस
हां, इसी माघ में
एहतियात से रोप तुम्हें, थपथपाकर
छोड़ रखा था मिट्टी जो
हरहराकर तुम भी तो
खिल उट्ठे थे कैसे, छत की मुंडेर पर...

ऐसे ही कुछ बिताए, तुम्हारे साथ के
लम्हों की शाखों पर
गुफ्तगू की निकल आई हैं कोपलें
जी करता है कि अब, सब धड़ यहीं...
दो बातें करूँ!

#स्ट्रॉबेरी 
manas_pratyay

©river_of_thoughts #Strawberry © Ratan Kumar