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अंक -2 और दुर्गाष्टमी ------ ब्रह्माण्ड में जीवन क

अंक -2 और दुर्गाष्टमी
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ब्रह्माण्ड में जीवन का आधार ही 2 है। प्रकृति और पुरूष। परमात्मा और आत्मा। अभाव और भाव। भाव भी 2 ही हैं एक स्त्रैण और दूसरा पौरुष। धरा और गगन। नर और नारायण। दिन और रात। ग्यारहवीं शताब्दी में रामानुज' जो कि तमिलनाडु में पैदा हुए 'विशिष्टताद्वेत' का सिद्धांत दिया। वे कहते हैं कि आत्मा परमात्मा से जुड़ने के बाद भी अपनी अलग सत्ता बनाए रखता है। उनके सिद्धांत से उत्तर भारत में भक्ति की एक नई धारा सगुण भक्ति का विकास हुआ। आगे चलकर भक्ति सगुण और निर्गुण 2 रूपों में हुई साकार और निराकार भी यही 2 रूप हैं।निम्बार्काचार्य का दर्शन भी द्वेताद्वेत' राधा जी को कृष्ण की शक्ति मानते हैं। 1199 ईस्वी कन्नड़ जिले के उडुपी नगर में जन्मे मधवाचार्य जी ने द्वेतवात' नाम का दर्शन प्रतिपादित किया। इन सभी से पहले शिव' और शक्ति का अस्तित्व है। शक्ति का ही साकार स्वरूप महागौरी' है। माता महागौरी'------ गौरी' स्त्रैण भाव का शुद्ध रुप है। वे नारी की शक्ति और गरिमा हैं। डमरू उनके प्रेम और मृदुलता का भाव है तो त्रिशूल संसार मे व्याप्त तीन तरह की पीड़ाओं का तोड़  जिन्हें हम आधिदैविक, अधिभौतिक, अधिदैहिक, ताप कहते हैं। वे सुंदरता और भव्यता के साथ समृद्धि को दर्शाती हैं। उनके स्वरूप से प्रकट होता है कि नारी की प्रसन्नता जीवन को सुख और शांति से भर देती है। संसार की सम्पूर्ण माया का मूल वही हैं। वे ही योगमाया है। योगमाया संसार के बन्धनों में डालने वाली और उनसे मुक्ति प्रदान करने वाली होती है।

माता गौरी' सहजता से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सम्पूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। त्रेतायुग में भगवान श्री राम को वर रूप में पाने के लिए सीता जी ने उनका स्मरण और वंदना की। इसी प्रकार द्वापरयुग में रूक्मिणी जी ने भी भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए महागौरी की उपासना की।

प्रेम और रिश्तों की शक्ति माता गौरी को बारंबार प्रणाम करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि वे सभी को सुख समृद्धि और शान्ति प्रदान करें------

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
अंक -2 और दुर्गाष्टमी
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ब्रह्माण्ड में जीवन का आधार ही 2 है। प्रकृति और पुरूष। परमात्मा और आत्मा। अभाव और भाव। भाव भी 2 ही हैं एक स्त्रैण और दूसरा पौरुष। धरा और गगन। नर और नारायण। दिन और रात। ग्यारहवीं शताब्दी में रामानुज' जो कि तमिलनाडु में पैदा हुए 'विशिष्टताद्वेत' का सिद्धांत दिया। वे कहते हैं कि आत्मा परमात्मा से जुड़ने के बाद भी अपनी अलग सत्ता बनाए रखता है। उनके सिद्धांत से उत्तर भारत में भक्ति की एक नई धारा सगुण भक्ति का विकास हुआ। आगे चलकर भक्ति सगुण और निर्गुण 2 रूपों में हुई साकार और निराकार भी यही 2 रूप हैं।निम्बार्काचार्य का दर्शन भी द्वेताद्वेत' राधा जी को कृष्ण की शक्ति मानते हैं। 1199 ईस्वी कन्नड़ जिले के उडुपी नगर में जन्मे मधवाचार्य जी ने द्वेतवात' नाम का दर्शन प्रतिपादित किया। इन सभी से पहले शिव' और शक्ति का अस्तित्व है। शक्ति का ही साकार स्वरूप महागौरी' है। माता महागौरी'------ गौरी' स्त्रैण भाव का शुद्ध रुप है। वे नारी की शक्ति और गरिमा हैं। डमरू उनके प्रेम और मृदुलता का भाव है तो त्रिशूल संसार मे व्याप्त तीन तरह की पीड़ाओं का तोड़  जिन्हें हम आधिदैविक, अधिभौतिक, अधिदैहिक, ताप कहते हैं। वे सुंदरता और भव्यता के साथ समृद्धि को दर्शाती हैं। उनके स्वरूप से प्रकट होता है कि नारी की प्रसन्नता जीवन को सुख और शांति से भर देती है। संसार की सम्पूर्ण माया का मूल वही हैं। वे ही योगमाया है। योगमाया संसार के बन्धनों में डालने वाली और उनसे मुक्ति प्रदान करने वाली होती है।

माता गौरी' सहजता से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सम्पूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। त्रेतायुग में भगवान श्री राम को वर रूप में पाने के लिए सीता जी ने उनका स्मरण और वंदना की। इसी प्रकार द्वापरयुग में रूक्मिणी जी ने भी भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए महागौरी की उपासना की।

प्रेम और रिश्तों की शक्ति माता गौरी को बारंबार प्रणाम करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि वे सभी को सुख समृद्धि और शान्ति प्रदान करें------

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।