लेखक की मेज़ मेरे नए किराए के मकान में, एक पुरानी मेज़ रखी थी. धूल की मोटी चादर ओढ़े अरसे से सोयी हुई थी. चादर हटते ही नींद से जाग गयी. अलसाई हुई थी. उसपर जमें स्याही के दाग सहमे हुए थे. कुछ हुआ था शायद वहां पर. कुछ बुरा. मेज़ की बायीं तरफ एक छोटी दराज़ थी. अपने नाम सी ही बंद उसमें कई राज़ थे. खोलकर देखा तो उसमें कुछ शब्द मिले