आहा..... ये सफेदा के, ग्लासों की खुशबू... आज पुनः एकाकार करती, मानो... गंगा में अस्थियों का विलय हो रहा हो ... और भस्म महादेव को लेपित... गाँव में द्वारे पर ही सफेदा का पेड़ था, बचपन से देखती आई, उसके ग्लास संजो खेलती, और उसकी भीनी खुशबू, आज भी याद है.... जाने क्यों आज साहस ही महक उठा मन उस खुशबू से, जबकि आस पास कहीं कोई सफेदे का पेड़ नहीं.... और फिर मैं विलीन पूर्णतः उस महक में........ चिर आनंदित बड़ा ही गहरा संबंध है मेरा इनसे, आँगन में जब पलंग पर लेटती थी तो, माँ के साथ देखती थी कि, कितने पेड़ो की पुलुई दिख रही है, चार तो सफेदा के ही होते, हवा के झोंकों के साथ हिलते डुलते आनंदित, समस्त बंधनो से मुक्त, और रात भर स्थिर हो देखते रहते चंद्र को, साधना में रत वैरागियों की भाँति, और मैं इन्हे देखती... आज फिर इच्छा हो रही है, ईश प्रेम में मैं भी सफेदा हो जाऊँ.... #yqdidi #सफेदा #खुशबू #विष्णुप्रिया