प्रेम के अनंत पर जा तुम कहीं खो गए क्या इतना हि था तुम्हारे प्रेम का विस्तार, जीवन तो यहाँ से शुरू होता जो बेहिसाब और अन्तहीन होता सारे दोष खतम होते सारी फ़िकर समाप्त होती बस हम होते तुम होते और प्रेम होता, फिर कोई ना पूछता ना कोई टोकता हम खेलते भीतर जन्मे ढ़ेरों उन्माद में और रस लेते एक अनंत जीवन का, ©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_मृत्यू_के_बाद #KavitriMantashaSultanpuri