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एक लड़की थी। वह बड़ी सुन्दर थी, शरीर उसका पतला था।

एक लड़की थी। वह बड़ी सुन्दर थी, शरीर उसका पतला था। रंग गोरा था। मुखड़ा गोल था। बड़ी-बड़ी आंखें कटी हुई अम्बियों जैसी थीं। लम्बे-लम्बे काले-काले बाल थे। वह बड़ा मीठा बोलती थी। धीरे-धीरे वह बड़ी हो गई। उसके पिता ने कुल के पुरोहित तथा नाई से वर की खोज करने को कहा, उन दानों ने मिलकर एक वर तलाश किया। न लड़की ने होनेवाले दूल्हे को देखा, न दूल्हे ने होनेवाली दुल्हन को। 

धूम-धाम से उनका विवाह हो गया। जब पहली बार लड़की ने पति को देखा तो उसकी बदसूरत शकल को देखकर वह बड़ी दु:खी हुई। इसके विपरीत लड़का सुन्दर लड़की को देखकर फूला न समाया। 

रात होती तो लड़की की सास दूध औटाकर उसमें गुड़ या शक्कर मिलाकर बहू को कटोरा थमा देती और कहती, "जा, अपने लाड़े (पति) को पिला आ।" वह कटोरा हाथ में लेकर, पति के पास जाती और बिना कुछ बोले चुपचाप खड़ी हो जाती। उसका पति दूध का कटोरा ले लेता और पी जाता। इस तरह कई दिन बीत गये। हर रोज ऐसे ही होता। एक दिन उसका पति सोचने लगा, आखिर यह बोलती क्यों नहीं। उसने निश्चय किया कि आज इसे बुलवाये बिना मानूंगा नहीं। जब तक यह कहेगी नहीं कि लो दूध पी लो, मैं इसके हाथ से कटोरा नहीं लूंगा। 

उस दिन रात को जब वह दूध लेकर उसके पास खड़ी हुई तो वह चुपचाप लेटा रहा। उसने कटोरा नहीं थामा। पत्नी भी कटोरे को हाथ में पकड़े खड़ी रही, कुछ बोली नहीं। बेचारी सारी रात खड़ी रही, मगर उसने मुंह नहीं खोला। उस हठीले आदमी ने भी दूध का कटोरा नहीं लिया।

एक लड़की थी। वह बड़ी सुन्दर थी, शरीर उसका पतला था। रंग गोरा था। मुखड़ा गोल था। बड़ी-बड़ी आंखें कटी हुई अम्बियों जैसी थीं। लम्बे-लम्बे काले-काले बाल थे। वह बड़ा मीठा बोलती थी। धीरे-धीरे वह बड़ी हो गई। उसके पिता ने कुल के पुरोहित तथा नाई से वर की खोज करने को कहा, उन दानों ने मिलकर एक वर तलाश किया। न लड़की ने होनेवाले दूल्हे को देखा, न दूल्हे ने होनेवाली दुल्हन को। धूम-धाम से उनका विवाह हो गया। जब पहली बार लड़की ने पति को देखा तो उसकी बदसूरत शकल को देखकर वह बड़ी दु:खी हुई। इसके विपरीत लड़का सुन्दर लड़की को देखकर फूला न समाया। रात होती तो लड़की की सास दूध औटाकर उसमें गुड़ या शक्कर मिलाकर बहू को कटोरा थमा देती और कहती, "जा, अपने लाड़े (पति) को पिला आ।" वह कटोरा हाथ में लेकर, पति के पास जाती और बिना कुछ बोले चुपचाप खड़ी हो जाती। उसका पति दूध का कटोरा ले लेता और पी जाता। इस तरह कई दिन बीत गये। हर रोज ऐसे ही होता। एक दिन उसका पति सोचने लगा, आखिर यह बोलती क्यों नहीं। उसने निश्चय किया कि आज इसे बुलवाये बिना मानूंगा नहीं। जब तक यह कहेगी नहीं कि लो दूध पी लो, मैं इसके हाथ से कटोरा नहीं लूंगा। उस दिन रात को जब वह दूध लेकर उसके पास खड़ी हुई तो वह चुपचाप लेटा रहा। उसने कटोरा नहीं थामा। पत्नी भी कटोरे को हाथ में पकड़े खड़ी रही, कुछ बोली नहीं। बेचारी सारी रात खड़ी रही, मगर उसने मुंह नहीं खोला। उस हठीले आदमी ने भी दूध का कटोरा नहीं लिया।

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