जब हम भी कभी बच्चे होते थे। दांत हमारे कचचे होते थे। थोडे़ नटखट थोडे़ शरारती। पर दिल के हम सच्चे होते थे। ☺ उस बचपन में हमारे खर्चे कम होते थे। दिमाग से नहीं तब दिल से रिश्ते होते थे। समाज के उस माया जाल से दूर। अपनी ही दुनिया में मद-मसत होते थे। ☺ डर के भाव में माँ के आंचल को तरसते होते थे। तब बदन में पहने हुए कोई भी कपड़े अच्छे होते थे। कंचे,गिललि-डंडा,पकड़ा-पकड़ी और चकका चलाना। बस यही सब खेल-खेलकर हम बहुत खुश होते थे। #बचचे होते थे।