बचपन और लंच ब्रेक स्कूल की वो घंटी बजती। छोड़ के बस्ते सब बाहर को भगती। तीस मिनट का ब्रेक था आता भाग के मुन्ना टिफिन लाता। आचार रोटी को महक थी भाती तू क्या लाया और तू टिफिन क्यों है छुपाती। मां देती खर्ची दो रुपए थी कुछ खा लेना बेटा ऐसे थी कहती। दो रुपए का क्रीम रोल था आता दोस्तो मैं उसको भी बाटा जाता। खेलने की बारी जब आती दाम तू देगा मै कच्ची घोड़ी हूं भाई। मिट्टी का फिर घर बनाते ये रास्ता घर का ..फिर वहां नदी बहाते। भाग के खेलते पकड़म पकड़ाई फिर घंटी बजती भागो गणित की मैडम है आई। बचपन का लंच ब्रेक अब कहा मिलता है हसने को तो मिलता पर स्कूल नहीं मिलता। अलंकृता #lunchbreak#nojoto#memories#