आज के दौर में जहां फूहड़ता चरम पर है,समाज में फूहड़ संगीत,नाच,गालियां इत्यादि की पराकाष्ठा है,अधिकतर गानों के बोल,उसमें नाट्य करते लोगों के पहनावे इत्यादि से फूहड़ता झलकती है... वहीं आज ऐसे समय में नवयुवकों का रुझान सूफी संगीत,उर्दू शायरी,सभ्य कविताओं,सामाजिक एवं पारिवारिक नाट्यों की तरफ आकर्षित होना बहुत ही सुखद अहसास दिलाता है। इस रुझान से लगता है कि एक बार फिर समाज में फैली फूहड़ता,नग्नता चाहे वो गानों की बोल की हो चाहे पहनावे की सब का विनाश होना तय है! ये सोच कर सुखद एहसास होता है कि युवा वर्ग ऐसे लेखन की तरफ आकर्षित हो रहा है जो दिनकर,महादेवी,अल्लामा इक़बाल और आज के दौर के राहत इंदौरी, कुमार विश्वास जैसे अनेकों लेखक,शायर,कवि हैं जो सामाजिक और पारिवारिक लेखनी लिखते हैं यद्यपि इनकी हास्य रचना भी ऐसी होती है कि सभी आयु वर्ग के लोग एक साथ बैठकर आनंद ले सकें! वर्तमान समय में अच्छी रचनाएं लिखी जा रहीं हैं जिसकी वजह से चलचित्र के गानों के बोल में भी एक नयापन सुनने को मिल रहा है और एक सुखद एहसास देता है! मेरी शुभकामनाएं उन नवयुवकों के लिये जो उर्दू की मिठास और हिंदी की समरसता आकर्षण से परिपूर्ण लेखनी कर रहे हैं ! आप का ये अदना (छोटा) से लेखक भी इसी में शामिल है,अपनी लेखनी में मेरी यही कोशिश रहती है कि रचना को फूहड़ता से कोसों दूर रखूं!!