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मैं शज़र डाल का शुभ्र अधखिला फूल चमन में प्रीति लिए

मैं शज़र डाल का शुभ्र अधखिला फूल
चमन में प्रीति लिए आया हूँ
अमर राग का सजल धवल प्रतिरूप
पटल का रूप लिए आया हूँ
काँटो में रहन-सहन मेरा झुरमुटों से पक्की यारी है
हैं साथ-साथ हम पले बढ़े पत्तियों से रिश्तेदारी है
शुचि आब हवा में सिहर सिहर
दिशि शुद्ध बन गया मधु पीकर
नभ में जलरव की धूलि निरख
कलि पुष्प बन गया हिम पीकर
पावस निसीथ की रातों में मलयज को रोज जना मैंने
अरुणिम प्रभात की वेला में नव रेणु-पराग सना मैंने
मैं शुद्ध सहज अभिभूत अमन का गीति लिए आया हूँ
साथ मधुर संगीत लिए आया हूँ......................
                                                -   अनिल विद्याधिकारी
मैं शज़र डाल का शुभ्र अधखिला फूल
चमन में प्रीति लिए आया हूँ
अमर राग का सजल धवल प्रतिरूप
पटल का रूप लिए आया हूँ
काँटो में रहन-सहन मेरा झुरमुटों से पक्की यारी है
हैं साथ-साथ हम पले बढ़े पत्तियों से रिश्तेदारी है
शुचि आब हवा में सिहर सिहर
दिशि शुद्ध बन गया मधु पीकर
नभ में जलरव की धूलि निरख
कलि पुष्प बन गया हिम पीकर
पावस निसीथ की रातों में मलयज को रोज जना मैंने
अरुणिम प्रभात की वेला में नव रेणु-पराग सना मैंने
मैं शुद्ध सहज अभिभूत अमन का गीति लिए आया हूँ
साथ मधुर संगीत लिए आया हूँ......................
                                                -   अनिल विद्याधिकारी