मंजिल जब चुन ली है.... तो, घबराते क्यों हो चलने में; राही हैं हम सभी यहाँ....... जाने अनजाने रस्तों में । तुम बेहतर हो उन पथिकों से, जिन्हें मंजिल अपनी पता नहीं.... जो कहते आज असंभव है... कल पूछेंगे तुमसे राह वही। भावनाओं को कसकर..........अरमानों को सहेजकर बाँध लो प्रिय तुम मठ्ठी आज कर्तव्य प्रवणता ढाल तुम्हारी, इक पल न गँवाओ उठने में मत घबराओ चलने में तुम मत घबराओ चलने में, कोई नहीं है टक्कर में प्रिय कोई नहीं है टक्कर में मत घबराओ चलने में .........