एक दीवाना था। (पार्ट 4) आप आगे बढ़ो या ना बढ़ो, ज़िन्दगी है कि आगे बढ़ती रहती है। हमारे अक्षत की ज़िन्दगी भी चल रही थी। धीरे धीरे वह सदमे से उभर रहा था, दोस्तों के साथ भी फिर से घुलने-मिलने लगा था। एक मुहब्बत की बातें उसका मूड खराब कर देती थी। उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये पर फिर कभी वह प्यार नहीं करेगा। और करता भी क्यों!? जब भी तनूजा का ख्याल आ जाता, दिल में एक टीस उठती। एक दिन सब यार-दोस्त इक्ट्ठे बैठे हुये थे। हँसी-मज़ाक का दौर चल रहा था। अक्षत भी हल्का सा कभी कभी मुस्कुरा देता था। किसी ने पूछ ही लिया अक्षत को… “आज-कल कुछ चुप से रहते हो! क्या बात है? सब ठीक तो है?” “हाँ! सब ठीक है।“ अक्षत ने कह तो दिया पर दिल का दर्द सिर्फ वही जानता था। किसी ने चुटकुला सुनाया तो सब फिर हँसने लगे। अक्षत का दर्द कोई पहचान नहीं पाया। शाम ढल चुकी थी। सब दोस्त बारी बारी अपने अपने घर जाने लगे। अक्षत भी घर तरफ चलने लगा। गली के नुक्कड़ तक अभी पहुँचा ही था कि… “अक्षत! तुम कहाँ थे? तुम्हारा फ़ोन भी नहीं लग रहा था!” “फोन की बैटरी डेड है। पर हुआ क्या है?” “जल्दी चलो। तुम्हारे पापा बाथरूम में गिर पड़े है और उन्हें काफी चोट आई है। उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ेगा।“